सूरज ने भेजा धरती पर
अपनी बेटी किरण धूप को
साथ खेलते धरती ने भी
उगा दिया झट हरी दूब को
दूब उगी तो देख गाय ने
हिला-हिला मुँह उसको खाया
उसको खा कर खूब ढ़ेर सा
दूध थनों में उसके आया
दूध मिला तो दादी माँ ने
जामन दे कर उसे जमाया
दही जमा तो माँ ने उसको
खूब बिलोकर मक्खन पाया
देखा मक्खन तो मन बोला
झटपट भैया इसको खाओ
ताक रहे क्यों खड़े देर से
मत इसको इतना पिघलाओ
पर बोली माँ इसको खा कर
हाथी से तगड़े हो जाओ
मैं बोला माँ लेकिन पहले
सूँड़ कहीं से तो ले आओ
-दिविक रमेश
(1946)
अपनी बेटी किरण धूप को
साथ खेलते धरती ने भी
उगा दिया झट हरी दूब को
दूब उगी तो देख गाय ने
हिला-हिला मुँह उसको खाया
उसको खा कर खूब ढ़ेर सा
दूध थनों में उसके आया
दूध मिला तो दादी माँ ने
जामन दे कर उसे जमाया
दही जमा तो माँ ने उसको
खूब बिलोकर मक्खन पाया
देखा मक्खन तो मन बोला
झटपट भैया इसको खाओ
ताक रहे क्यों खड़े देर से
मत इसको इतना पिघलाओ
पर बोली माँ इसको खा कर
हाथी से तगड़े हो जाओ
मैं बोला माँ लेकिन पहले
सूँड़ कहीं से तो ले आओ
-दिविक रमेश
(1946)
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