खूब बड़ा-सा अगर कहीं
सन्दूक एक मैं पा जाता
जिसमें दुनिया भर का
चिढ़ना, गुस्सा आदि
समा जाता
तो मैं सबका क्रोध
घूरना, डाँट और
फटकार सभी
छीन-छीनकर भरता उसमें
पाता जिसको जहाँ अभी
तब ताला मजबूत लगाकर
उसे बन्द कर देता मैं
किसी कहानी के दानव को
बुला, कुली कर लेता मैं
दुनिया के सबसे गहरे
सागर में उसे डुबो आता
तब न किसी बच्चे को
कोई कभी डाँटता, धमकाता
-रमापति शुक्ल
( 1911 )
सन्दूक एक मैं पा जाता
जिसमें दुनिया भर का
चिढ़ना, गुस्सा आदि
समा जाता
तो मैं सबका क्रोध
घूरना, डाँट और
फटकार सभी
छीन-छीनकर भरता उसमें
पाता जिसको जहाँ अभी
तब ताला मजबूत लगाकर
उसे बन्द कर देता मैं
किसी कहानी के दानव को
बुला, कुली कर लेता मैं
दुनिया के सबसे गहरे
सागर में उसे डुबो आता
तब न किसी बच्चे को
कोई कभी डाँटता, धमकाता
-रमापति शुक्ल
( 1911 )
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