Saturday 9 February 2019

नानी का कम्बल

नानी का कम्बल है आला
देख उसे क्यों डरे न पाला
ओढ़ बैठती है जब घर में
बन जाती है भालू काला

रात अँधेरी जब होती है
ओढ़ उसे नानी सोती है
तो मैं भी डरता हूँ कुछ कुछ
मुन्नी भी डर कर रोती है

पर बिल्ली है जरा न डरती
लखते ही नानी को टरती
चुपके से आ इधर-उधर से
उसमें म्याऊँ म्याऊँ करती

कहीं मदारी यदि आ जाये
कम्बल को पहिचान न पाये
तो यह डर है डम-डम करके
पकड़ न नानी को ले जाये

-श्रीनाथ सिंह

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