बंदर-बंदर
मस्त कलंदर
क्यों बैठे हो
डाली पर
‘चलो उतरकर
आओ अंदर
काँप रहे हो
तुम थर थर’
बंदर बोला-
अरे मुछंदर
कभी न मैं
आऊँ अंदर
डम-डम-डमडम
डमरू ले कर
मुझे नचाओगे
दिन भर
-सूर्य कुमार पांडेय
(1956)
मस्त कलंदर
क्यों बैठे हो
डाली पर
‘चलो उतरकर
आओ अंदर
काँप रहे हो
तुम थर थर’
बंदर बोला-
अरे मुछंदर
कभी न मैं
आऊँ अंदर
डम-डम-डमडम
डमरू ले कर
मुझे नचाओगे
दिन भर
-सूर्य कुमार पांडेय
(1956)
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