Sunday 9 September 2018

गिलहरी

गिलहरी
दिन भर आती-जाती

फटे-पुराने कपड़े लत्ते
धागे और ताश के पत्ते
सुतली, कागज, रुई, मोंमियाँ
अगड़म-बगड़म लाती
गिलहरी दिनभर आती-जाती

ठीक रसोईघर के पीछे
शीशे की खिड़की के नीचे
एस्किमो-सा गोल-गोल घर
चुन-चुन खूब बनाती
गिलहरी दिनभर आती-जाती

दो बच्चे हैं छोटे-छोटे
ठीक अँगूठे जितने मोटे
बड़े प्यार से उन दोनों को
अपना दूध पिलाती
गिलहरी दिनभर आती-जाती

खिड़की पर जब कौआ आता
बच्चे खाने को ललचाता
पूँछ उठाकर चिक्-चिक्-चिक्-चिक्
करके उसे डराती
गिलहरी दिनभर आती-जाती

भोली-भाली बहुत लजीली
छोटी-सी प्यारी शरमीली
देर तलक शीशे से चिपकी
बच्चों से बतियाती
गिलहरी दिनभर आती-जाती

-डा० जगदीश व्योम

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