Saturday 9 February 2019

चाँद का गीत


दिन में तुम
ग़ायब रहते हो
और रात में मैं सो जाऊँ
आओ चाँद तुम्हारे ऊपर
गीत लिखा है, तुम्हे सुनाऊँ

जब छोटा था
दादी अम्मा
रोज़ रात में तुम्हें बुलातीं
मैं तकता था राह तुम्हारी
दादी खुद थक कर सो जातीं
इन्तज़ार करता था
तुम जो आ जाओ तो
खीर खिलाऊँ

अब रातों में
मैं सो जाऊँ
अन्दर दस परदों के पीछे
बरसों पहले गाँव गया, तब
सोया था अम्बर के नीचे
गूगल में
जब तुमको देखूँ
देख-देख कर मैं ललचाऊँ

पेन्सिल, क़लम,
क़िताबें, कॉपी
बस इनमें उलझा रहता हूँ
होम वर्क या इम्तेहान के
झूले में झूला करता हूँ
चन्दा, तारे,
परियाँ सब मैं
भूल गया हूँ, सच बतलाऊँ

-प्रदीप शुक्ल

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