Monday 4 September 2023

दूर देश से आई तितली

दूर देश से आई तितली
चंचल पंख हिलाती
फूल-फूल पर
कली-कली पर
इतराती-इठलाती

यह सुन्दर फूलों की रानी
धुन की मस्त दीवानी
हरे-भरे उपवन में आई
करने को मनमानी

कितने सुन्दर पर हैं इसके
जगमग रंग-रंगीले
लाल, हरे, बैंजनी, वसन्ती
काले, नीले, पीले

कहाँ-कहाँ से फूलों के रंग
चुरा-चुरा कर लाई
आते ही इसने उपवन में
कैसी धूम मचाई

डाल-डाल पर, पात-पात पर
यह उड़ती फिरती है
कभी ख़ूब ऊँची चढ़ जाती है
फिर नीचे गिरती है

कभी फूल के रस-पराग पर
रुककर जी बहलाती
कभी कली पर बैठ न जाने
गुप-चुप क्या कह जाती

बच्चों ने जब देखी इसकी
खुशियाँ, खेल निराले
छोड़छाड़ कर खेल-खिलौने
दौड़ पड़े मतवाले

अब पकड़ी तब पकड़ी तितली
कभी पास है आती
और कभी पर तेज़ हिलाकर
दूर बहुत उड़ जाती

बच्चों के भी पर होते तो
साथ-साथ उड़ जाते
और हवा में उड़ते-उड़ते
दूर देश हो आते

-निरंकार देव सेवक
( 19-01-1919 - 29-10-1994 )

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